Kalaripayattu best martial art of India–
हमारा भारत एक ऐसा देश है जहां पर बहुत सारी कलाओं का विकास हुआ है। आयुर्वेद, योगा, मार्शल आर्ट कुछ ऐसी कलाएं हैं जिनका विकास भारत में ही हुआ है।
आज हम बात करने वाले हैं ऐसी एक मार्शल आर्ट तकनीक के बारे में जिसका उदय भारत में ही हुआ है।
आज हम बात करने वाले हैं ऐसी एक मार्शल आर्ट तकनीक के बारे में जिसका उदय भारत में ही हुआ है।
इस कला का नाम है कलरीपायट्टु(Kalaripayattu)। कलरीपायट्टु विश्व की सबसे पुरानी मार्शल आर्ट तकनीक है और इस कला का विकास दक्षिण भारत में हुआ था।कलरी शब्द का अर्थ है व्यायाम या युद्ध करने का स्थान और पायट्टु का अर्थ है युद्ध या व्यायाम करना।

कलरीपायट्टु(Kalaripayattu) की शुरुआत
कलरीपायट्टु की शुरुआत के बारे में अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार इस कला को भगवान शिव ने परशुराम को सिखाया था और परशुराम ने यह कला अगस्थ्य मुनि को सिखाई थी। जबकि कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम और अगस्त्य मुनि ने अलग-अलग इस कला का विकास किया है। अगस्त्य मुनि की कलरीपायट्टु में बिना हथियारों से लड़ने की तकनीक पर बल दिया गया है।
ऐसा माना जाता है कि अगस्त्य मुनि ने जानवरों से बचाव के लिए इस कला का विकास किया था।
जबकि भगवान परशुराम की कलरीपायट्टु तकनीक में हथियारों के साथ लड़ने को अधिक महत्व दिया गया है। मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम ने यह कला 21 व्यक्तियों को सिखाई थी ताकि वह इस कला का विकास और प्रसार कर सकें।
कलरीपायट्टु के बारे में एक यह भी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण को भी यह कला आती थी और उन्होंने अपनी नारायणी सेना को भी यह कला सिखाई थी।
Kalaripayattu का विकास
9वीं शताब्दी में कलरीपायट्टु का असल विस्तार हुआ जब केरल के योद्धाओं ने इसे जंग के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया. माना जाता है कि 11 वीं शताब्दी में चोल राजवंश, पाण्ड्य राजवंश और चेर साम्राज्य के बीच 100 साल तक चली एक जंग में कलरीपायट्टु का खूब इस्तेमाल किया गया।
कलरीपायट्टु(Kalaripayattu ) का प्रशिक्षण
इस कला का प्रशिक्षण 7 वर्ष की आयु से शुरू कर दिया जाता है। क्योंकि यह अवस्था कच्ची मिट्टी की तरह होती है जिसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है। हालांकि आप इस कला का प्रशिक्षण किसी भी उम्र में शुरू कर सकते हैं। वह स्थान जहां पर इस कला को सिखाया जाता है उसे कलरी कहते हैं। इस कलरी में एक जगह ईश्वर का स्थान बनाया जाता है जिसे पुत्तरा कहते हैं।
कलरीपायट्टु के प्रशिक्षण को चार मुख्य भागों में बांटा गया है।
कलरीपायट्टु के प्रशिक्षण को चार मुख्य भागों में बांटा गया है।
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1.मिथारी
2.कोल्थारी
3.अंक्थरी
4.वेरूम्काई
मिथारी
यह इस कला का पहला चरण है जिसमें शरीर के सभी अंगों और जोड़ों की गतिशीलता के लिए विभिन्न प्रकार की कसरत कराई जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य शरीर के सभी अंगो का समन्वय और उनमें लचक पैदा करना है।
कोल्थारी
शारीरिक रूप से मजबूत होने के बाद छात्रों को लकड़ी के हथियारों से लड़ना सिखाया जाता है। आरंभ में छात्रों को धातु के या धारदार हथियार इसलिए नहीं दिए जाते ताकि उन्हें किसी प्रकार की क्षति ना हो। इस चरण में लकड़ी के भिन्न-भिन्न हथियारों से लड़ना सिखाया जाता है।
अंक्थरी
लकड़ी के हथियारों में पारंगत होने के बाद छात्रों को धातु के हत्यारों से लड़ना सिखाया जाता है। इस चरण को अंक्थरी कहते हैं जिसका शाब्दिक अर्थ है युद्ध प्रशिक्षण। इस चरण में घातक हथियारों का प्रयोग सिखाया जाता है इसलिए विद्यार्थी को बहुत अधिक एकाग्रता की आवश्यकता पड़ती है। इस चरण के अंत में एक लचीली तलवार से लड़ना सिखाया जाता है जिसे उरूमि कहते हैं।उरूमि को योद्धा आसानी से अपनी कमर के चारों तरफ बांध सकता है। जिसे आसानी से शत्रु की नज़रों से बचा के रखा जा सकता है और जरूरत पड़ने पर आसानी से कमर से निकालकर लड़ाई में प्रयोग किया जा सकता है।
वेरूम्काई
पहले तीन चरणों को सफलतापूर्वक सीखने के बाद अभ्यासकर्ता को बिना हथियार यानी नंगे हाथ अपनी रक्षा करना सिखाया जाता है। जिसके अंतर्गत अपना बचाव करना और कोमल बिंदुओं पर प्रहार करने की कला सिखाई जाती है।वेरूम्काई को सबसे अच्छी युद्ध कला माना जाता है। इसलिए केवल कुल कुछ चुनिंदा छात्रों
को ही है यह कला सिखाई जाती है।
को ही है यह कला सिखाई जाती है।
ऐसा दावा किया जाता है कि कलरीपायट्टु सीखे हुए योद्धा मात्र सही मर्मम यानी स्पर्श द्वारा अपने प्रतिद्वंदी को बेहोश कर सकते हैं या मार सकता है।

अन्य मार्शल आर्ट कलाओं का उदय
कलरीपायट्टु का अन्य मार्शल आर्ट तकनीकों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। चीन में विख्यात कुंग फू का विकास भी कलरीपायट्टु से ही हुआ है। ऐसा माना जाता है कि बौद्ध धर्म के अनुयाई बोधिधर्मन ने यह कला चीन के लोगों को दिखाई थी। इसी कला के रूप को आज पूरे विश्व में कुंगफू के नाम से जाना जाता है।
Kalaripayattu का पतन और पुनर्विकास
19वीं सदी में जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था उस समय इस कला का पतन हो गया था। ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजों के शासनकाल में भारत में कलरीपायट्टु के प्रशिक्षण पर रोक लगा दी गई। जो भी इस कला का अभ्यास या प्रशिक्षण देते हुए मिलता उसे दंड दिया जाता था। लेकिन भारत की आजादी के बाद कुछ जगहों पर कलरीपायट्टु का प्रशिक्षण शुरू किया गया। वर्तमान में भारत में 100 से अधिक कलरीपायट्टु
प्रशिक्षण केंद्र है। भारत के कुछ प्रमुख शहरों और मुख्य रूप से दक्षिण भारत केरला और तमिलनाडु में आपको कलरीपायट्टु के प्रशिक्षण केंद्र आसानी से मिल जाएंगे।
अंत में यही कहना चाहूंगा कि कलरीपायट्टु भारत की महान धरोहर में से एक है हमें अधिक से अधिक लोगों तक इसे पहुंचाना चाहिए।
प्रशिक्षण केंद्र है। भारत के कुछ प्रमुख शहरों और मुख्य रूप से दक्षिण भारत केरला और तमिलनाडु में आपको कलरीपायट्टु के प्रशिक्षण केंद्र आसानी से मिल जाएंगे।
अंत में यही कहना चाहूंगा कि कलरीपायट्टु भारत की महान धरोहर में से एक है हमें अधिक से अधिक लोगों तक इसे पहुंचाना चाहिए।
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