Shivaji Maharaj : Bharat ka goarav-छत्रपति शिवाजी महाराज एक बुद्धिमान ,बहादुर,शुरवीर और दयालु शासक थे। उनका जन्म 19 फरवरी 1627 को मराठा परिवार में महाराष्ट्र के शिवनेरी में हुआ। शिवाजी के पिता का नाम शाहजी और माता जी का नाम जीजाबाई था। माता जीजाबाई स्वभाव से एक धार्मिक महिला थी लेकिन वो एक महान वीरांगना महिला थीं।
इसी कारण उन्होंने शिवाजी महाराज का पालन-पोषण रामायण, महाभारत तथा अन्य भारतीय वीर योधाओ की कहानियां सुना के और उन्हें धर्म के लिए लड़नेक शिक्षा देकर किया था। बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बालको को जमा करके उनका नेता बनकर युद्ध करने और किले को जीतने का खेल खेला करते थे।
दादा कोणदेव जी ने शिवाजी महाराज को सभी तरह की सामयिक युद्ध आदि विधाओं का ज्ञान दिया था। धर्म, राजनीति और संस्कृति की भी उचित शिक्षा दिलवाई गई थी। उस समय के महान संत रामदेव की शरण में आने से शिवाजी को पूर्ण रूप से देश प्रेम और अपने लोगो के लिए लड़ने का जज्बा मिला ।
Shivaji Maharaj का परिवार और गुरु
छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निंबालकर के साथ हुआ था। उनके पुत्र का नाम संभाजी था। संभाजी शिवाजी के बड़े पुत्र और उत्तराधिकारी थे । संभाजी ने जिसने 1680 से 1689 ई. तक राज्य किया। संभाजी में अपने पिता की कर्मठता और दृढ़ संकल्प का अभाव था। संभाजी की पत्नी का नाम येसुबाई था। उनके पुत्र और उत्तराधिकारी राजाराम थे। शिवाजी के समर्थ गुरु रामदास का नाम भारत के साधु-संतों व विद्वत समाज में सुविख्यात है।
Shivaji Maharaj का पराक्रम
युवावस्था में आते ही उनका खेल वास्तविक कर्म शत्रु बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगे। जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई, यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची। अत्याचारी किस्म के यवन और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही मारे डर के बगलें झांकने लगे।
शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया। पता चलने पर शिवाजी आग बबूला हो गए। उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया। तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा, पर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनख का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया। इससे उसकी सेनाएं अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं।
छत्रपति शिवाजी महाराज एक भारतीय शासक थे जिन्होंने मराठा साम्राज्य खड़ा किया था इसीलिए उन्हें एक अग्रगण्य वीर एवं अमर स्वतंत्रता-सेनानी स्वीकार किया जाता है। वीर शिवाजी राष्ट्रीयता के जीवंत प्रतीक एवं परिचायक थे। इसी कारण निकट अतीत के राष्ट्रपुरुषों में महाराणा प्रताप के साथ-साथ शिवाजी का भी नाम आता है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती महाराष्ट्र में वैसे तो 19 फरवरी को मनाई जाती है लेकिन कई संगठन शिवाजी का जन्मदिवस हिन्दू कैलेंडर में आने वाली तिथि के अनुसार मनाते हैं। उनकी इस वीरता के कारण ही उन्हें एक आदर्श एवं महान राष्ट्रपुरुष के रूप में स्वीकारा जाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज का 3 अप्रैल 1680 ई. में तीन सप्ताह की बीमारी के बाद रायगढ़ में स्वर्गवास हो गया।
Shivaji Maharaj के कुछ वाक्य
“स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं उसे हासिल करूँगा।” – शिवाजी ने स्वराज्य के लिए लड़ने का वचन दिया था और इसके लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं की।
“जिसकी लाठी उसकी भैंस” – शिवाजी का यह वाक्य मतलब है कि उसने सभी उपद्रवियों को समझाया था कि वे स्वतंत्र रूप से अपनी जिंदगी जी सकते हैं, लेकिन दूसरों को जीने का अधिकार नहीं होता।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” – शिवाजी ने यह श्लोक भगवद्गीता से उद्धरण करते हुए अपनी सेना को यह समझाया था कि कार्य करने में जुट जाओ, फलों के लिए मत देखो।
“जिस राष्ट्र के लोग एक दूसरे से विवाद करते हैं, वह नष्ट होता है।” – शिवाजी ने एकता और समानता के महत्व को समझाने के लिए इस तरह के उद्धरण दिए।
यूं तो शिवाजी पर मुस्लिम विरोधी होने का दोष लगाया जाता है, पर यह सत्य इसलिए नहीं कि क्योंकि शिवाजी महाराज की सेना में तो अनेक मुस्लिम नायक एवं सेनानी थे तथा अनेक मुस्लिम सरदार और सूबेदारों जैसे लोग भी थे। वास्तव में शिवाजी का सारा संघर्ष लोगो से था, जिन्होंने औरंगजेब जैसे शासकों दुराचारी शाशक को पनाह दे रखी थी ।