11 Unique Poem on Nature in Hindi

प्रकृति में बहुत सारी ऐसी चीज़े हैं जो बहुत हि सुंदर और मनभावन हैं. इनकी सुन्दरता का वर्णन करना बहुत मुश्किल हैं. इसलिए कवियों और लेखकों ने प्रकृति पर कविताएँ और कहानियां लिखी हैं.

इन कविताओ के संग्रह में से हम आप के लिए लाए हैं कुछ बेहतरीन Poem on Nature in Hindi. इन कविताओं को पढकर आप खुद को प्रकृति के नजदीक पाओगे.तो आएये लेते हैं इन कविताओं का आनंद.

सूरज निकला गगन में दूर हुआ अंधियारा,

पेड़ों ने ली अंगड़ाई, ठंडी ठंडी हवा चलाई,

पक्षियों ने भी नभ में छलांग लगाई।

हरे-भरे बागानों में रंग बिरंगे फूल खिले,

फूलों ने अजब सी महक फैलाई,

तितली, भंवरों को वो खींच लाई।

रसपान कर फूलों का सबने मौज उड़ाई,

देख प्रकृति की सुंदरता को,

कोयल भी धीमे-धीमे गुनगुनाए।

रंग बदलती प्रकृति हर पल मन को भाए,

नभ में कभी बादल तो कभी नीला आसमां हो जाए,

रूप तेरा देख कर हर कोई मन मोहित हो जाए।

झील, नदियां मीठा जल पिलाएं,

पर्वत हमें ऊंचाई को छुना सिखाएं,

प्रकृति हमें सब से प्रेम करना सिखाए।

रात के अंधियारे में चांद भी अपनी कला दिखाएं,

सफेद रोशनी से प्रकृति को रोशन कर जाए,

तारे भी टिमटिमा कर नाच दिखाएं।

प्रकृति हमें रूप अनेक दिखाती,

एक दूसरे से प्रेम करना सिखाती,

यही हमें जीवन का हर रंग बतलाती।

फूल – महादेवी वर्मा

मधुरिमा के, मधु के अवतार

सुधा से, सुषमा से, छविमान,

आंसुओं में सहमे अभिराम

तारकों से हे मूक अजान!

सीख कर मुस्काने की बान

कहां आऎ हो कोमल प्राण!

स्निग्ध रजनी से लेकर हास

रूप से भर कर सारे अंग,

नये पल्लव का घूंघट डाल

अछूता ले अपना मकरंद,

ढूढं पाया कैसे यह देश?

स्वर्ग के हे मोहक संदेश!

रजत किरणों से नैन पखार

अनोखा ले सौरभ का भार,

छ्लकता लेकर मधु का कोष

चले आऎ एकाकी पार;

कहो क्या आऎ हो पथ भूल?

मंजु छोटे मुस्काते फूल!

उषा के छू आरक्त कपोल

किलक पडता तेरा उन्माद,

देख तारों के बुझते प्राण

न जाने क्या आ जाता याद?

हेरती है सौरभ की हाट

कहो किस निर्मोही की बाट?

Poems on Nature in Hindi

जब तपता है सारा अंबर

आग बरसती है धरती पर|

फैलाकर पत्तों का छाता

सब को सदा बचाते पेड़|

पंछी यहां बसेरा पाते

गीत सुना कर मन बहलाते|

वर्षा, आंधी, पानी में भी

सबका घर बन जाते पेड़|

इनके दम पर वर्षा होती

हरियाली है सपने बोती|

धरती के तन मन की शोभा

बनकर के इठलाते पेड़|

जितने इन पर फल लग जाते

ये उतना नीचे झुक जाते|

औरों को सुख दे कर के भी

तनिक नहीं इतराते पेड़|

हमें बहुत ही भाते पेड़

काम सभी के आते पेड़|

प्रकृति की सुबह हो गई

चिड़ियों का चहचहाना शुरू

सूरज भी सर पर आया है

प्रकृति का मनोरम दृश्य छाया है।।

किसान जा रहा खेतों पर

झरने से पानी बह रहा

सुबह की ओस की बूंदों से

मनोरम दृश्य हो रहा।।

ठंडी ठंडी हवा चल रही

पत्तों का झुरमुट हिल रहा

नदियां और तालाब, आकाश

मनमोहक छटा निहार रहा।।

सुबह हो गई प्रकृति की

जंगल में मोर नाच रहा है

कहीं शांति मधुर है उपवन

प्रकृति का मन मोह रहा।।

शहर में रहने वाले, कैसे समझनगे प्रकृति की भाषा

उन्होंने तो देखा नहीं, प्रकृति का भोर उजाला।।

चार कमरों में रहने वाले, खेतों को कैसे जानेंगे

प्रकृति की हरियाली को, वो कैसे पहचानेंगे।।

उनके यहां तो है गमले, जंगल को कैसे जानेंगे

कोयल की ना कुक सुनी, गाना कैसे पहचानेंगे।।

मनोरम दृश्य ना देखा कभी, नदियों का जल ना पिया कभी

शहर की आफदाफी मै, गांव को ना जिया कभी।।

चारदीवारी मै कैद हुए, पार्कों में बस तुम घूमे हो

प्रकृति की ना सुन्दरता देखी, शहर मै तुम खोए हो।।

है महका हुआ गुलाब

खिला हुआ कंवल है,

हर दिल मे है उमंगे

हर लब पे ग़ज़ल है,

ठंडी-शीतल बहे ब्यार

मौसम गया बदल है,

हर डाल ओढ़ा नई चादर

हर कली गई मचल है,

प्रकृति भी हर्षित हुआ जो

हुआ बसंत का आगमन है,

चूजों ने भरी उड़ान जो

गये पर नये निकल है,

है हर गाँव मे कौतूहल

हर दिल गया मचल है,

चखेंगे स्वाद नये अनाज का

पक गये जो फसल है,

त्यौहारों का है मौसम

शादियों का अब लगन है,

लिए पिया मिलन की आस

सज रही “दुल्हन” है,

है महका हुआ गुलाब

खिला हुआ कंवल है…!!

Poems on Nature in Hindi

प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है,

मार्ग वह हमें दिखाती है।

प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।

नदी कहती है’ बहो, बहो

जहाँ हो, पड़े न वहाँ रहो।

जहाँ गंतव्य, वहाँ जाओ,

पूर्णता जीवन की पाओ।

विश्व गति ही तो जीवन है,

अगति तो मृत्यु कहाती है।

प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।

शैल कहतें है, शिखर बनो,

उठो ऊँचे, तुम खूब तनो।

ठोस आधार तुम्हारा हो,

विशिष्टिकरण सहारा हो।

रहो तुम सदा उर्ध्वगामी,

उर्ध्वता पूर्ण बनाती है।

प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।

वृक्ष कहते हैं खूब फलो,

दान के पथ पर सदा चलो।

सभी को दो शीतल छाया,

पुण्य है सदा काम आया।

विनय से सिद्धि सुशोभित है,

अकड़ किसकी टिक पाती है।

प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।

यही कहते रवि शशि चमको,

प्राप्त कर उज्ज्वलता दमको।

अंधेरे से संग्राम करो,

न खाली बैठो, काम करो।

काम जो अच्छे कर जाते,

याद उनकी रह जाती है।

प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है।

एक दिन सुबह उठा मैं,

लगा सोचने दुनिया के बारे में,

कैसे जीते हैं हम,

कैसे लगी रहती प्रकृति ये हमारे सहारे में।

मै टहल रहा थे सड़क पर,

और हवा की ठंडी झलक आयी,

सूरज अब भी निकलने को था,

चिड़ियों की आवाज़ कही दूर तलक आयी।

कलयुग में अपराध का

बढ़ा अब इतना प्रकोप

आज फिर से काँप उठी

देखो धरती माता की कोख!!

समय समय पर प्रकृति

देती रही कोई न कोई चोट

लालच में इतना अँधा हुआ

मानव को नही रहा कोई खौफ!!

कही बाढ़, कही पर सूखा

कभी महामारी का प्रकोप

यदा कदा धरती हिलती

फिर भूकम्प से मरते बे मौत!!

मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे

चढ़ गए भेट राजनितिक के लोभ

वन सम्पदा, नदी पहाड़, झरने

इनको मिटा रहा इंसान हर रोज!!

सबको अपनी चाह लगी है

नहीं रहा प्रकृति का अब शौक

“धर्म” करे जब बाते जनमानस की

दुनिया वालो को लगता है जोक!!

कलयुग में अपराध का

बढ़ा अब इतना प्रकोप

आज फिर से काँप उठी

देखो धरती माता की कोख!!

संध्या – सुमित्रानंदन पंत

कहो, तुम रूपसि कौन?

व्योम से उतर रही चुपचाप

छिपी निज छाया-छबि में आप,

सुनहला फैला केश-कलाप,

मधुर, मंथर, मृदु, मौन!

मूँद अधरों में मधुपालाप,

पलक में निमिष, पदों में चाप,

भाव-संकुल, बंकिम, भ्रू-चाप,

मौन, केवल तुम मौन!

ग्रीव तिर्यक, चम्पक-द्युति गात,

नयन मुकुलित, नत मुख-जलजात,

देह छबि-छाया में दिन-रात,

कहाँ रहती तुम कौन?

अनिल पुलकित स्वर्णांचल लोल,

मधुर नूपुर-ध्वनि खग-कुल-रोल,

सीप-से जलदों के पर खोल,

उड़ रही नभ में मौन!

लाज से अरुण-अरुण सुकपोल,

मदिर अधरों की सुरा अमोल,–

बने पावस-घन स्वर्ण-हिंदोल,

कहो, एकाकिनि, कौन?

मधुर, मंथर तुम मौन?

Poems on Nature in Hindi

है महका हुआ गुलाब

खिला हुआ कंवल है,

हर दिल मे है उमंगे

हर लब पे ग़ज़ल है,

ठंडी-शीतल बहे ब्यार

मौसम गया बदल है,

हर डाल ओढ़ा नई चादर

हर कली गई मचल है,

प्रकृति भी हर्षित हुआ जो

हुआ बसंत का आगमन है,

चूजों ने भरी उड़ान जो

गये पर नये निकल है,

है हर गाँव मे कौतूहल

हर दिल गया मचल है,

चखेंगे स्वाद नये अनाज का

पक गये जो फसल है,

त्यौहारों का है मौसम

शादियों का अब लगन है,

लिए पिया मिलन की आस

सज रही “दुल्हन” है,

है महका हुआ गुलाब

खिला हुआ कंवल है…!!

कितना सुन्दर अपना संसार,

ऋतुओं की है यहां बहार,

मिलजुल कर सब रहते हैं

प्रकृति इसे हम कहते हैं।

सब जगह हरियाली छायी,

सूरज का वरदान है,

हम रहते हैं प्रकृति में और,

यही हमारी शान है।

प्रकृति से हमें मिलता है सब कुछ,

चाहे अन्न, हवा या जल हो ,

हमें बचाती हमें खिलाती,

प्रकृति पे ही सब अर्पण हो।

प्रकृति का नाश हो रहा

मानव भी अब त्राश हो रहा

पेड़ों का काटा जा रहा

हरियाली को मिटाया जा रहा।।

प्रकृति का मान नहीं कोई उसका सम्मान नहीं

मानव भी समझे ,खुद को भगवान

करता वो सबका अपमान

प्रकृति के उपकरो को करता है वो निष्काम।।

अपने मतलब के लिए, करता है वो सारे काम

पानी ना देता पेड़ों को, फल लेता है सारे काम

पेड़ ना कभी लगता वो, बारिश को भी चाहता वो

मोह माया मै पड़कर, प्रकृति को बेचता है वो।।

शहर में जाता वो मॉर्निंग वॉक पर

गांव को गंवार बताता है

खुद करता है प्रकृति का नाश

एक पेड़ लगाकर, दस फोटो खिंचवाता है।।

नभ मै देखो बादल आए

काली घटाएं आसमान मै छाए

तूफ़ानों के संग मै आए

बारिश का संदेश है लाए।।

प्रकृति तरस रही थी

पानी की एक एक बूंदों को

फसलें मर रही थी

बारिश की एक एक बूंदों को।।

पर अब जब बारिश आयी है

हर तरफ खुशियां छाई है

बच्चे खुशी से नाच रहे

प्रकृति जश्न मनाई है।।

सूखी धरती को पानी मिला

मरुस्थल को नव जीवन दान मिला

वृक्षों मै नई कोंपल फूटी है

ओस की बूंदों ने प्रकृति लूटी।।

कौन सिखाता है चिड़ियों को,

ची ची ची ची करना ?

कौन सिखाता फुदक फुदक कर,-

उनको चलना फिरना ?

कौन सिखाता फुर्र से उड़ना,

दाने चुग-चुग खाना ?

कौन सिखाता तिनके ला ला,

कर घोंसले बनाना ?

कुदरत का यह खेल वही,

हम सबको, सब कुछ देती,

किन्तु नहीं बदले में हमसे,

वह कुछ भी है लेती ||

दोस्तों ये थी कुछ मजेदार Poem on Nature in Hindi. I hope आप को ये अच्छी लगी होंगी.

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